क्यों पड़ गई कांग्रेस कमजोर?
पिछले कुछ सालों से कांग्रेस पार्टी का संगठन कमजोर दिखाई दे रहा है। कारण स्पष्ट है, आपसी गुटबाजी और निजी महत्वाकांक्षा। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का पार्टी के ज़मीनी कार्यकर्ताओं से कोई तालमेल ही नहीं है। पार्टी से ऊपर नेता हो गए हैं। कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर दिया गया है। उनकी राय कोई मायने नहीं रखती। कोई संघीय ढांचे की संरचना दिखाई नहीं दे रही है।
पहले से स्थिति मजबूत –
हालांकि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में पहले से कहीं ज्यादा प्रभावशाली ढंग से सामने आ रही है। पवन खेड़ा, अखिलेश प्रताप सिंह, सुप्रीया श्रीनेत, सुरेंद्र राजपूत आदि जैसे प्रवक्ताओं ने पार्टी को बहुत मजबूत बनाया है। वहीं संगठन में भी श्रीनिवास बी वी जैसे नेताओं ने अपना लोहा मनवाया है। लेकिन प्रादेशिक स्तर पर अब भी कांग्रेस पार्टी को कई अमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है जिसके संकेत अब मिल रहे हैं।
स्वराज मिशन के सूत्रों के अनुसार जल्द ही काँग्रेस पार्टी में परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ साथ कई राज्यों के पीसीसी अध्यक्ष बदले जाएंगे। कुछ राज्यों में तो बहुत बड़े पैमाने पर संगठनात्मक परिवर्तन होने की संभावना है।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि कांग्रेस देश की आत्मा में है और उसे खत्म नहीं किया जा सकता है हालांकि भाजपा नेता और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया है और साम दाम दंड भेद से बहुत हद तक वे सफल भी रहे हैं लेकिन अब ये कांग्रेस को देखना है कि उससे चूक कहाँ हो रही है।
क्या है बुद्धिजीवियों की राय?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस का जनता से संपर्क न हो पाना, अपने संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत न कर पाना और निजी महत्वाकांक्षा के कारण आपसी गुटबाजी ही काँग्रेस की इस स्थिति का कारण है। पार्टी में कर्मठ नेता और कार्यकर्ता अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं इसलिए पार्टी छोड़कर जा रहे हैं लेकिन अब भी कांग्रेस में और पार्टी के बाहर ऐसे लोग हैं जोकि कांग्रेस के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं, बस जरूरत है उन्हें साथ लाने की। खैर सूत्र बताते हैं कि अब कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बड़े पैमाने पर परिवर्तन की तैयारी कर रहा है।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ में भी आनेवाले समय में कोई परिवर्तन देखने को मिलेंगे जिसमें संगठन के साथ साथ और भी बड़े बदलाव होंगे जिसकी चर्चा बहुत समय से हो रही है।